विश्व ऑटिज्म/आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस।
बरेली:- आजकल अगर हम बात करें तो तमाम तरह के दिवस मनाते हैं लेकिन एक शिक्षिका और एक माँ होने के नाते अगर देखा जाए तो आज का दिन यानि कि ऑटिज्म दिवस बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। हम कई बार देखते हैं कि हमारा अपना बच्चा या स्कूल, मोहल्ले में कोई बच्चा न तो ज्यादा बातचीत करता है न किसी से बोलता है न ही स्कूल की किसी गतिविधि में हिस्सा लेता है और समाज से भी कटा-कटा रहता है, तो ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि बच्चा कहीं ऑटिज्म का शिकार तो नहीं है।प्रतिवर्ष 2 अप्रैल विश्व स्तर पर ऑटिज्म/आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व केंद्रित जागरूकता दिवस 1 नवंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ परिषद द्वारा पारित किया गया था और 18 दिसंबर 2007 को इसे लागू कर दिया गया। ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर कहते हैं। यह एक विकास संबंधी गड़बड़ी है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं। डॉक्टर निदान करने के लिए बच्चे के विकासात्मक इतिहास और व्यवहार को देखते हैं। एएसडी का कभी-कभी 18 महीने या उससे कम उम्र में पता लगाया जा सकता है। 2 साल की उम्र तक एक अनुभवी पेशेवर द्वारा किया गया निदान विश्वसनीय माना जा सकता है। हालाँकि कई बच्चों को बहुत बड़े होने तक अंतिम निदान नहीं मिल पाता है। अपने अनुभव के द्वारा मैं यही कहना चाहूँगी कि बच्चे से बातचीत की जाए, एक अच्छा माहौल दिया जाए, दूसरे बच्चों की तुलना में ऐसे बच्चों को अधिक समय दिया जाए ताकि समस्या का निदान जल्दी किया जा सके और पूरी उम्र बच्चे को ये समस्या झेलनी ना पड़े।
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राखी गंगवार (शिक्षिका), बरेली
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